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भगवान परशुराम जयंती पर ब्राह्मण समाज के पदाधिकारियों ने की पूजा व कोरोना महामारी से रक्षा हेतु हवन-यज्ञ का किया आयोजन।

भगवान परशुराम जयंती पर ब्राह्मण समाज के पदाधिकारियों ने आज अक्षय तृतीया को भगवान परशुराम की जयंती पर भगवान परशुराम की प्रतिमा का स्नान ध्यान व नई पोशाक धारण कराकर भगवान की पूजा आरती की।
ब्राह्मण समाज के तहसील अध्यक्ष अशोक शर्मा व नगर अध्यक्ष वासुदेव शर्मा सहित चौबीसा महू क्षेत्र के अध्यक्ष रमेश चतुर्वेदी ने बताया कि कोरोना महामारी से रक्षा हेतु हवन यज्ञ का आयोजन किया व सरकार की गाइडलाइन को ध्यान में रखते हुए समाज के कुछ ही लोगों ने भाग लिया। जिनमें शुभम तिवाड़ी, शम्भूदयाल पंडित, मिथलेश पंडित, संजय पंडा, सुरेंद्र तिवाड़ी, महेश शर्मा, मंजीत मुद्गल व कई समाज के लोग मोजूद रहे।

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पृथ्वी पर ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है जिसको कोई समस्या ना हो और कोई ऐसी समस्या नहीं है जिसका कोई समाधान ना हो । मंजिल चाहे कितनी भी ऊँची क्यों न हो उसके रास्ते हमेशा पैरों के नीचे से ही जाते है।

पृथ्वी पर ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है जिसको कोई समस्या ना हो और कोई ऐसी समस्या नहीं है जिसका कोई समाधान ना हो मंजिल चाहे कितनी भी ऊँची क्यों न हो उसके रास्ते हमेशा पैरों के नीचे से ही जाते है।

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अल्बर्ट आईंस्टीन :- खुद को सकारात्मक रहना सिखाया जा सकता है।

जीवन में सफलता का सकारात्मक सोच और आशावादी होने से सीधा संबंध है| अकादमिक क्षेत्र हो या फिर पेशेवर जीवन, आशावादी लोग बाकियों से आगे रहते हैं| विभिन्न शोध बताते हैं कि सभी लोग आशावादी हो, यह जरूरी नहीं है, लेकिन दिमाग को सकारात्मक होने के लिए प्रशिक्षित कर सकते हैं| यानी आशावादी होना सीखा जा सकता है|

1. किंग्स कॉलेज ऑफ लंदन के शोधकर्ताओं का एक अध्ययन बताता है कि व्यक्ति में 25 फ़ीसदी आशावाद उसका खुद का होता है | इसके बाद हमारी सकारात्मकता को प्रभावित करने वाले सामाजिक- आर्थिक स्थिति जैसे कई पहलू होते हैं, जो अक्सर हमारे नियंत्रण में नहीं होते| लेकिन फिर भी हम अपने आशावाद  को बढ़ा सकते हैं और जिंदगी के प्रति सकारात्मक रवैया को विकसित किया जा सकता है|स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर लीह बीस का कहना है कि कुछ लोग प्राकृतिक रूप से आशावादी होते हैं |लेकिन कई लोग आशावाद को सीख भी सकते हैं |प्रोफेसर लीह के मुताबिक इसका सबसे अच्छा तरीका है अपने काम और जीवन में एक उद्देश्य तलाशना| जब हमारे काम से कोई उद्देश जुड़ा होता है या हम किसी उद्देश्य के साथ जीते हैं तो हम खुद में ज्यादा सकारात्मक महसूस करते हैं.

2. शोध बताते हैं कि पॉजिटिव मूड का संबंध हमारे दिमाग के बाएं हिस्से की गतिविधियों से होता है जबकि नकारात्मक भावनाओं का संबंध हमारे दिमाग के दाएं हिस्से से है| द जर्नल ओं पर्सनैलिटी एंड सोशल साइकोलॉजी में प्रकाशित एक अध्ययन भी बताता है कि हमारे दिमाग की गतिविधियों का पैटर्न यह तय करता है कि हम किस परिस्थिति में कैसी प्रतिक्रिया देंगे | अध्ययन में जिन लोगों ने मनोरंजन फिल्में देखें उनमें दिमाग का बायां हिस्सा ज्यादा सक्रिय रहा जिससे अच्छी प्रतिक्रियाएं आयीं | जिन्होंने अवसाद वाली फिल्में देखी उनका दायां हिस्सा ज्यादा सक्रिय रहा और उन्होंने नकारात्मक भावनाएं जाहिर की |

  • लेकिन सोचने समझने की प्रक्रिया में बदलाव कर आप दिमागी गतिविधियों को नियंत्रित कर सकते हैं इसके लिए कॉग्निटिव रिस्ट्रक्चरिंग अपना सकते हैं इसमें यह चीजें कर सकते हैं
  • नकारात्मक विचार लाने वाली परिस्थितियां पहचाने |
  • उस पल की भावनाएं समझने की कोशिश करें |
  • परिस्थिति में आए नकारात्मक विचारों को पहचाने|
  • वो प्रमाण देखें जो आपके नकारात्मक विचारों का समर्थन करते हैं या नकारते हैं
  • तथ्यों पर ध्यान दें,  नकारात्मक विचारों की जगह सकारात्मक विचार लाएं जो ज्यादा वास्तविक हो |
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जिंदगी में अगर बुरा वक़्त नहीं आता तो अपनों में छुपे हुए गैर और गैरों में छुपे हुए अपनों का कभी पता नहीं चलता।

जिंदगी में अगर बुरा वक़्त नहीं आता तो अपनों में छुपे हुए गैर और गैरों में छुपे हुए अपनों का कभी पता नहीं चलता।