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बुद्धि का बल : कहानी

एक समय की बात है। सुकरात अपने शिष्यों के साथ बैठे थे। तभी वहां एक ज्योतिषी आ पहुंचा और बोला मैं ज्ञानी हूं और मैं किसी का भी चेहरा देखकर उसका चरित्र बता सकता हूं। बताओ तुम में से कौन मेरी इस विद्या को परखना चाहेगा। सुकरात ने उससे अपने बारे में बताने को कहा ज्योतिषी कुछ देर उन्हें निहार के बोला, “तुम्हारे चेहरे की बनावट बताती है कि तुम सत्ता के विरोधी हो, तुम्हारे अंदर द्रोह करने की भावना प्रबल है। तुम्हारी आंखों के बीच पड़ी सिकुड़न तुम्हारे अंदर अत्यंत क्रोधी होने का प्रमाण देती है।

शिष्य यह बातें सुनकर गुस्से में आ गए लेकिन सुकरात ने उन्हें शांत करवाया। ज्योतिषी आगे बोला तुम्हारा बैडोल सिर और माथे से पता चलता है कि तुम एक लालची इंसान हो। सुकरात ने ज्योतिषी की बातों को बड़े धैर्य से सुना और आखिर में ज्योतिषी को इनाम देकर विदा किया। शिष्य अपने गुरु के इस व्यवहार से आश्चर्य में पड़ गए।

सुकरात ने उन्हें समझाया कि ज्योतिषी के बताएं सारे दोष मुझमें हैं लेकिन वह मेरे अंदर के विवेक को नहीं आंक पाया जिसके बल पर मैंने इन बुराइयों को वश में कर रखा है, बस वह यही चूक गया। वह मेरे बुद्धि के बल को नहीं समझ पाया।

कहानी से शिक्षा:

बुद्धि का प्रयोग कर हम अपनी कमियों से पार पा सकते हैं

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