राजा विक्रमादित्य के पास सामुद्रिक लक्षण जानने वाला एक ज्योतिषी पहुंचा। विक्रमादित्य का हाथ देखकर वह चिंता मग्न हो गया, उसके शास्त्र के अनुसार तो राजा को दीन दुर्बल और कंगाल होना चाहिए था । लेकिन वह तो सम्राट थे, स्वस्थ थे। लक्षणों में ऐसी विपरीत स्थिति संभव है उसने पहली बार देखी थी । ज्योतिषी की दशा देखकर विक्रमादित्य उसकी मनोदशा समझ गए और बोले कि बाहरी लक्षणों से यदि आपको संतुष्टि नहीं मिली हो तो छाती चीर कर दिखाता हूं, भीतर के लक्षण भी देख लीजिए । इस पर ज्योतिषी बोला, नहीं महाराज! मैं समझ गया कि आपने पुरुषार्थी हैं ।आप में पूरी क्षमता है इसलिए आपने परिस्थितियों को अनुकूल बना लिया और भाग्य पर विजय प्राप्त कर ली अब बात मेरी समझ में आ गई है कि कोई भी युग मनुष्य को नहीं बनाता बल्कि मनुष्य ही युग का निर्माण करने की क्षमता अपने आप में रखता है ।
क्योंकि एक पुरुषार्थी मनुष्य के हाथों में ही लकीरों को बदलने का सामर्थ्य होता है । स्थिति एवं दशा मनुष्य का निर्माण नहीं करती, यह तो मनुष्य जो स्थिति का निर्माण करता है एक दास स्वतंत्र व्यक्ति हो सकता है और एक सम्राट दास भी बन सकता है ।
भाग्य से बढ़कर पुरुषार्थ होता है। (Hard work is key to Success)